संजय कुमार मेहरा , गुरुग्राम/दिल्ली। रंगा और बिल्ला...। ये वो नाम हैं जिन्होंने आज से 46 साल पहले देश की राजधानी दिल्ली में ऐसे जघन्य अपराध को अंजाम दिया था, जिसे सुनकर आज भी लोगों की रूह कांप जाती है। इस अपराध में दोषी ठहराए जाने के बाद रंगा, बिल्ला को तिहाड़ जेल में फांसी पर लटकाया गया था। फांसी पर लटकाए जाने के बाद बिल्ला की तो कुछ ही देर में मौत हो गई थी, लेकिन रंगा फांसी देने के दो घंटे बाद भी जिंदा था। इसे देखकर डॉक्टर भी हैरान हो गए थे।
बता दें कि दिल्ली में भारतीय नौसेना में कैप्टन एम.एम. चोपड़ा की बेटी सेकेंड ईयर की छात्रा गीता चोपड़ा व बेटा संजय चोपड़ा 26 अगस्त 1978 की शाम को करीब छह बजे धौला कुआं क्षेत्र में अपने घर से ऑल इंडिया रेडियो के संसद मार्ग कार्यालय में युवा वाणी कार्यक्रम में हिस्सा लेने के लिए निकले थे। बरसात का मौसम था। वे एक वाहन में बैठक गोल डाकखाना के पास पहुंचे। उनका रेडियो कार्यक्रम 9 बजे खत्म होना था। पिता एम.एम. चोपड़ा को दोनों बच्चों को लेने के लिए रेडियो कार्यालय जाना था। जब गीता चोपड़ा व संजय चोपड़ा गोल डाकखाना के पास थे तो वहां थोड़ी ही देर बाद वहां फिएट कार पहुंची। कार में सवार लोगों ने उनका अपहरण कर लिया। गोल मार्केट चौराहे पर बिजली के सामान की दुकान के मालिक ने उस कार में हलचल देखी तो उन्होंने पुलिस को सूचना दी। कार की पिछली सीट से गीता मदद के लिए चिल्ला रही थी। पुलिस कंट्रोल रूम ने इलाके में गश्त कर रहे वाहनों को वायरलेस से सूचना दी।
रंगा व बिल्ला ने दिल्ली में भाई-बहन की हत्या को दिया था अंजाम , दोनों भाई-बहन थे नेवी अफसर कैप्टन एम.एम. चोपड़ा के बच्चे
राजेंद्र नगर थाने में एफआईआर दर्ज की गई। इंजीनियर इंद्रजीत सिंह नामक व्यक्ति ने राम मनोहर लोहिया अस्पताल के पास से उसी कार को गुजरते देखा था। इंद्रजीत स्कूटर पर सवार थे और उन्होंने लडक़ी की चीखें सुनी थीं। उन्होंने जैसे ही चौराहे के पास खड़ी कार के पास अपना स्कूटर रोका तो दोनों भाई-बहन पिछली सीट पर बैठे हुए थे। कार में से संजय चोपड़ा ने इंद्रजीत को अपनी खून से सनी शर्ट दिखाई। इस बीच कार चालक लाल बत्ती को पार करके कार भगा ले गया। इसके दो दिन बात 28 अगस्त 1978 को पशु चराने वाले एक व्यक्ति ने रिज के जंगल में दो लाशें देखी। लाशें सडक़ चुकी थी। दोनों लाशें गीता चोपड़ा व संजय चोपड़ा की ही थीं।
कुख्यात बदमाश रंगा-बिल्ला ने ही की थी बहन-भाई की हत्या
गीता चोपड़ा व संजय चोपड़ा की हत्या रंगा व बिल्ला ने ही की थी। रंगा का असली नाम कुलजीत उर्फ रंगा खुश था और बिल्ला का नाम जसबीर सिंह था। उसे बंगाली भी कहा जाता था। हत्या करके वे फरार हो गए थे। वे आगरा रेलवे स्टेशन से कालका मेल ट्रेन में चढ़ गए थे जो दिल्ली जा रही थी। ट्रेन के जिस डिब्बे में चढ़े वह सेना के जवानों का डिब्बा था। डिब्बे में बैठे जवानों ने दोनों को पकड़ लिया और दिल्ली पहुंचकर पुलिस को सौंप दिया।
रंगा, बिल्ला ने तलवार से की थी गीता व संजय की हत्या
रंगा व बिल्ला बहुत ही खूंखार अपराधी थे। उन्होंने लूटपाट, हत्या समेत अनेक अपराधिक घटनाओं को अंजाम दिया था। फिरौती के लिए उन्होंने गीता व संजय की अपहरण किया था। कार लेकर वे रिज के सुनसान इलाके में जा पहुंचे। बिल्ला ने वहां गीता को गाड़ी से बाहर खींच लिया।
31 जनवरी 1982 को रंगा व बिल्ला को तिहाड़ जेल में दी गई फांसी , गीता चोपड़ा व संजय चोपड़ा के नाम पर दिए जाते हैं वीरता पुरस्कार
इस बीच गीता के भाई संजय के हाथ गाड़ी में पड़ी तलवार देखी। उसने बहन की इज्जत बचाने के लिए तलवार से बिल्ला पर वार किया। कुख्यात बदमाश रंगा, बिल्ला से संजय चोपड़ा ज्यादा देर तक संघर्ष नहीं कर पाया। उससे तलवार छीनकर बदमाशों ने हत्या कर दी। इसके बाद गीता चोपड़ा के साथ दुष्कर्म की घटना को अंजाम देकर तलवार से उसकी भी हत्या कर दी।
जल्लाद फकीरा व कालू ने दी थी फांसी
सभी कानूनी औपचारिकताओं के बाद रंगा व बिल्ला को दिल्ली की तिहाड़ जेल में फांसी देने के लिए फरीदकोट व मेरठ जेल से दो जल्लाद फकीरा व कालू को बुलाया गया। तिहाड़ जेल में फांसी कोठी में एक साथ दोनों को 31 जनवरी 1982 को फांसी दी गई। डॉक्टर्स ने फांसी दिए जाने के दो घंटे बाद नियम अनुसार दोनों की मौत की पुष्टि करने के लिए जांच की। जांच में पता चला कि बिल्ला तो मर चुका है, लेकिन रंगा की नब्ज चल रही थी। यानी वह दो घंटे बाद भी जिंदा था। इसके बाद जल्लाद ने रंगा के गले में लगे फंदे को नीचे से फिर खींचा। तब जाकर उसकी मौत हुई। रंगा ने मरने से पहले जो बोले सो निहाल, सत श्री अकाल बोला था। बिल्ला फांसी के दौरान रो पड़ा था। यह जानकारी तिहाड़ जेल के पूर्व कानून अधिकारी सुनील गुप्ता व पत्रकार सुनेत्रा चौधरी द्वारा लिखी गई पुस्तक ब्लैक वारंट में किया गया है।
मुंबई पुलिस को भी थी रंगा, बिल्ला की तलाश
रंगा व बिल्ला ने मुंबई में भी फिरौती के लिए अपहरण, कार चोरी जैसी घटनाओं को अंजाम दिया था। दोनों पुलिस हिरासत से भागे हुए थे। दोनों की तलाश के लिए मुंबई पुलिस क्राइम ब्रांच की एक दिल्ली पहुंची। मुंबई पुलिस के पास रंगा व बिल्ला की उंगलियों के निशान थे। मुंबई पुलिस से मिले दोनों की उंगलियों के निशान से दिल्ली पुलिस को काफी मदद मिली। पुलिस ने उन फिंगर प्रिंट्स को फॉरेंसिक एक्सपट्र्स को दिया। 31 अगस्त की शाम को दिल्ली पुलिस को उत्तरी दिल्ली के मजलिस पार्क इलाके से एक फिएट कार लावारिस हालत में मिली थी। पुलिस ने उस कार पर लगे फिंगर प्रिंट व मुंबई पुलिस द्वारा सौंपे गए फिंगर प्रिंट का मिलान किया तो वे रंगा व बिल्ला के ही थे। इससे साफ हो गया कि इस घटना को रंगा व बिल्ला ने अंजाम दिया था।
फांसी पर लटकाने के दो घंटे बाद भी जिंदा था रंगा
गीता चोपड़ा व संजय चोपड़ा की हत्या के आरोपी रंगा व बिल्ला को अदालत ने अपहरण, दुष्कर्म व हत्या के दोषी ठहराया। दिल्ली हाईकोर्ट ने दोनों को 7 अप्रैल 1979 को फांसी की सजा सुनाई। फांसी की सजा के खिलाफ वे सुप्रीमकोर्ट भी पहुंचे। सुप्रीमकोर्ट ने फांसी की सजा को बरकरार रखा। आखिरकार 31 जनवरी 1982 को दोनों को तिहाड़ जेल में फांसी दे दी गई।
गीता व संजय के नाम पर दिए जाते हैं वीरता पुरस्कार
गीता चोपड़ा व संजय चोपड़ा को भारत सरकार की ओर से मरणोपरांत कीर्ति चक्र सम्मान से से नवाजा गया था। उनके ही नाम पर हर साल 26 जनवरी को 16 साल के कम उम्र बच्चों को वीरता पुरस्कार से सम्मानित किया जाता है।