चंडीगढ़ । महाकुंभ मेला हिंदू धर्म के सबसे बड़े और सबसे पवित्र अनुष्ठान में से एक है। यह हर बारह साल में लगता है। इस शुभ आयोजन में भाग लेने के लिए करोड़ों श्रद्धालु उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में शामिल हुए हैं। तीर्थ यात्रियों को त्रिवेणी संगम, जहां गंगा, यमुना और पौराणिक सरस्वती नदियों का मिलन होता है, वहां पर स्नान करके खुद को आध्यात्मिक रूप से शुद्ध करने का अवसर मिलता है। ऐसे कई चीजें हैं, जो इसके इतिहास को और भी ज्यादा समृद्ध बना रही हैं, उन्हीं में से एक जंगम साधुओं की रहस्यमयी दुनिया भी है, तो आइए इन संतों के बारे में विस्तार से जानते हैं।
कौन हैं जंगम साधु?
पौराणिक कथाओं के अनुसार, जंगम साधुओं की उत्पत्ति भगवान शिव की जांघ से हुई थी, जो कि उनके नाम से भी ही पता चलता है। ऐसा कहा जाता है कि जब भगवान शिव और देवी पार्वती का विवाह हो रहा है था, उस दौरान महादेव विष्णु जी और ब्रह्मा जी को दक्षिणा देने की इच्छा प्रकट की, जिसे दोनों ही देवों ने स्वीकार नहीं किया। इस वजह से शंकर भगवान ने अपनी जांघ को काटकर जंगम साधुओं की उत्पत्ति की। फिर इन्हीं साधुओं ने भोलेनाथ का विवाह कराया और उनकी संपूर्ण दक्षिणा स्वीकार की।
दान-दक्षिणा लेकर करते हैं अपना जीवन यापन
जंगम साधु भगवान शिव के उपासक होते हैं। ये सिर्फ साधुओं से ही दान स्वीकार करते हैं, जिसके लिए अखाड़ों में जाकर साधु-संतों को शिव कथा, संगीत आदि सुनाते हैं। इसके साथ ही दान-दक्षिणा से ही ये लोग अपना जीवन यापन करते हैं। ऐसा कहते हैं कि हर कोई जंगम साधु नहीं बन सकता है, इसका अधिकार सिर्फ इनके पुत्रों को ही होता है। ऐसा कहा जाता है कि इनकी हर पीढ़ी से कोई एक सदस्य साधु बनता है। इससे इन साधुओं का प्रभाव सदैव के लिए रहता है।