चण्डीगढ़ । हिन्दू धर्म में विवाह व्यक्ति के जीवन में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। वहीं दुनियाभर में होने वाले विवाह की अपेक्षा यह काफी अलग होता है और इसमें कई सारी रस्मों को निभाया जाता है। इनमें सबसे खास माने जाते हैं सात फेरे। ऐसा कहा जाता है 7 फेरे 7 जन्मों का साथ होता है। लेकिन कई स्थान ऐसे हैं जहां 7 की जगह सिर्फ 4 फेरे ही लिए जाते हैं। क्यों होता है ऐसा आइए जानते हैं ज्योतिषी एवं वास्तु सलाहकार से।
पंडित जी कहते हैं कि, फेरों के संबंध में पारस्कार गृहसूत्र और यजुर्वेद में भी सिर्फ 4 फेरों का ही उल्लेख मिलता है, जिसके साथ 7 वचन लिए जाते हैं। लेकिन, लोकाचार में फेरों की संख्या कई बार बढ़ने के बाद 4 से 7 हो गई। लेकिन आज भी कई स्थनों पर सिर्फ 4 फेरे ही लिए जाते हैं।
विवाह के 4 फेरों का महत्व
सिख समुदाय की शादी सिर्फ 4 फेरे लेने के साथ ही संपन्न हो जाती है और ऐसा माना जाता है कि 4 फेरों में वर और वधू वैवाहिक जीवन से जुड़े पहलुओं के बारे में जान लेते हैं। सिख समुदाय में शादी दिन में होती है और इस दौरान दुल्हन के पिता केसरी रंग की पगड़ी पहनते हैं। इस पगड़ी का एक सिरा दूल्हे के कंधे पर और दूसरा सिरा दुल्हन के हाथ में दिया जाता है। वहीं दूल्हा और दुल्हन गुरु ग्रंथ साहिब को बीच में रखकर चार फेरे लेते हैं। इसमें पहले के 3 फेरों में दुल्हन आगे रहती है और दूल्हा पीछे। वहीं आखिरी फेरे में दूल्हा आगे होता है और दुल्हन पीछे।
क्या है 4 फेरों का अर्थ?
सिख समुदाय में 4 फेरों के साथ संपन्न होने वाले विवाह में पहला फेरा धर्म के मार्ग पर चलने की सीख देता है। इसमें बताया जाता है कि, वैवाहिक जीवन में धर्म से कभी भी समझौता नहीं करना चाहिए। वहीं दूसरे फेरे में सीमित धन में सुखी रहने और ज्ञान के बारे में बताया जाता है। तीसरे फेरे में काम से अवगत कराया जाता है, जबकि चौथे फेरे में वर-वधु को मोक्ष के बारे में बताया जाता है।
इस समुदाय में भी होते हैं 4 फेरे
हालांकि, सिर्फ सिख समुदाय के अलावा कुछ और भी ऐसे स्थान हैं जहां विवाह के दौरान 4 फेरे ही लिए जाते हैं। इनमें राजस्थान के कुछ राजपूत घरानों में भी 4 फेरों की परंपरा है। इसके पीछे एक कहानी भी प्रचलित है कि एक बार राजस्थान के प्रसिद्ध लोक देवता पाबूजी राठौड़ के विवाह के दौरान फेरे लेते वक्त अचानक उन्हें सूचना मिली कि लुटेरे किसी बुजुर्ग महिला की गाय चुराकर भाग रहे हैं। तो पाबूजी अपने 4 फेरे में ही विवाह पूरा कर गाय की रक्षा के लिए निकल पड़े थे। तभी से यहां पर 7 की जगह 4 फेरों की परंपरा चली आ रही है। राजस्थान ही नहीं देश के कुछ अन्य राज्यों में भी 7 के स्थान पर 4 फेरे ही लेकर शादी संपन्न हो जाती है।