बेंगलुरु | कर्नाटक सरकार अनुसूचित जाति (SC) कोटे (रिजर्वेशन) के अंदर कोटा देने की मंजूरी दे दी। अब राज्य में SC समुदाय को मिलने वाले रिजर्वेशन के अंदर कुछ उप-जातियों को रिजर्वेशन दिया जाएगा। इसका डेटा जुटाने के लिए एक आयोग बनाने का फैसला भी लिया गया है।
SC जातियों के भीतर से ही इसकी मांग आ रही थी। जातियों का एक वर्ग आरोप लगाता है कि कुछ रसूखदार उप-जातियों को ही रिजर्वेशन का फायदा मिलता है। कई उप-जातियों तक रिजर्वेशन का फायदा पहुंचा ही नहीं। इस वजह से वे आज भी हाशिए पर हैं।
डेटा जुटाने के लिए आयोग बनेगा, कमीशन की रिपोर्ट आने तक भर्तियों पर रोक
राज्य के कानून और संसदीय मामलों के मंत्री एचके पाटिल ने बताया कि कैबिनेट ने SC कोटे के अंदर कोटा देने का फैसला किया है। सरकार आयोग से तीन महीने में रिपोर्ट देने को कहेगी। रिपोर्ट पेश होने तक कम से कम तीन महीने के लिए सभी नौकरी भर्तियां रोकने का फैसला भी हुआ है।
पिछली भाजपा सरकार ने भी कोटे के अंदर कोटा देना तय किया था। इसके लिए केंद्र सरकार से SC (लेफ्ट) के लिए 6%, SC (राइट) के लिए 5.5%, अछूत (बंजारा, भोवी, कोरचा, कुरुमा आदि) के लिए 4.5 % और अन्य के लिए 1% रिजर्वेशन तय करने की सिफारिश की थी।
हरियाणा CM सैनी ने पहली कैबिनेट में भी SC कोटे में कोटा लागू किया
हरियाणा में भाजपा की तीसरी बार सरकार बनाने के बाद 19 अक्टूबर को पहली कैबिनेट मीटिंग में SC कोटे में कोटा देने का फैसला किया। राज्य में अभी SC के लिए 15% और ST के लिए 7.5% आरक्षण है। इस 22.5% आरक्षण में ही राज्य एससी व एसटी के उन कमजोर वर्गों का कोटा तय कर सकेंगे, जिनका प्रतिनिधित्व बहुत कम है।
इससे SC वर्ग की जो जातियां ज्यादा पिछड़ी रह गई हैं और उन्हें आरक्षण का लाभ नहीं मिल पाया है, सरकारी नौकरियों में उनका पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है, उन्हें सब-क्लासिफिकेशन के जरिए उसी कोटे में प्राथमिकता दी जा सकती है।
सुप्रीम कोर्ट ने अपना 20 साल पुराना फैसला पलटकर मंजूरी दी थी
सुप्रीम कोर्ट ने इसी साल 1 अगस्त को राज्यों को SC जातियों के भीतर सब-क्लासिफिकेशन करने का संवैधानिक अधिकार दिया था। ताकि सामाजिक और शैक्षणिक रूप से ज्यादा पिछड़ी जातियों को रिजर्वेशन दिया जा सके।
सात जजों की संविधान पीठ ने 6:1 के बहुमत से फैसला सुनाया था। पीठ ने साल 2004 के ईवी चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश मामले में पांच जजों की संविधान पीठ का फैसला खारिज किया था। साल 2004 के फैसले में कोर्ट ने कहा था कि अनुसूचित जातियां खुद में एक समूह हैं, इसमें शामिल जातियों में जाति के आधार पर और बंटवारा नहीं किया जा सकता।