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भैरवाष्टमी में करें पूजन, क्रूर ग्रह और शनि का प्रकोप होगा शांत

Updated on Wednesday, November 08, 2017 12:27 PM IST

दिल्ली  ,7 नवंबर ( न्यूज़ अपडेट इंडिया )  । इस वर्ष 10 नवंबर 2017 के दिन भैरवाष्टमी मनाई जाएगी। कुछ जगहों पर मतांतर से 11 नवंबर को यह मनाई जा रही है। काल भैरव अष्टमी तंत्र साधना के लिए अति उत्तम मानी जाती है। यह कठिन साधनाओं में से एक मानी जाती है, जिसमें मन की सात्विकता और एकाग्रता का पूरा ध्यान रखना होता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, मार्गशीर्ष कृष्ष्ण पक्ष अष्टमी को भगवान शिव, भैरव रूप में प्रकट हुए थे इसीलिए इसी तिथि को व्रत व पूजा का विशेष विधान है।

उनकी प्रिय वस्तुओं में काले तिल, उड़द, नींबू, नारियल, अकौआ के पुष्प, कड़वा तेल, सुगंधित धूप, पुए, मदिरा, कड़वे तेल से बने पकवान दान किए जाते हैं। भैरवाष्टमी या कालाष्टमी के दिन पूजा उपासना द्वारा सभी शत्रुओं और पापी शक्तियों का नाश होता है और सभी प्रकार के पाप, ताप एवं कष्ट दूर होते हैं। इस दिन श्री कालभैरव का दर्शन-पूजन करने से शुभ फल मिलते हैं।

भैरव जी की पूजा उपासना मनोवांछित फल देने वाली होती है। यह दिन साधक भैरव जी की पूजा अर्चना करके तंत्र-मंत्र की विद्याओं को पाने में समर्थ होता है। यही सृष्टि की रचना, पालन और संहारक हैं। काशी में स्थित भैरव मंदिर सर्वश्रेष्ठ स्थान पाता है। इसके अलावा शक्तिपीठों के पास स्थित भैरव मंदिरों का महत्व माना गया है। माना जाता है कि इन्हें स्वयं भगवान शिव ने स्थापित किया था।

भैरवाष्टमी पूजन में करें रात्रि जागरण

भगवान शिव के इस रूप की उपासना षोड्षोपचार पूजन सहित करनी चाहिए। रात्रि को जागरण करते हुए भैरव कथा और आरती करें। कालभैरव को प्रसन्न करने के लिए इस दिन काले कुत्ते को भोजन जरूर कराएं क्योंकि इसे शुभ माना जाता है। मान्यता अनुसार इस दिन भैरव जी की पूजा व व्रत करने से समस्त विघ्न समाप्त हो जाते हैं और भूत, पिशाच का भी डर नहीं रहता है।

क्रूर ग्रहों और शनि का प्रकोप करता है शांत

भैरव उपासना क्रूर ग्रहों के प्रभाव को समाप्त करती है। कालभैरव के राजस, तामस एवं सात्विक तीनों प्रकार के साधना तंत्र प्राप्त होते हैं। भैरव साधना स्तंभन, वशीकरण, उच्चाटन और सम्मोहन जैसी तांत्रिक क्रियाओं के दुष्प्रभाव को नष्ट करने के लिए कि जाती है। इनकी साधना करने से सभी प्रकार की तांत्रिक क्रियाओं के प्रभाव नष्ट हो जाते हैं।

भैरव जी दिशाओं के रक्षक और काशी के संरक्षक माने जाते हैं। इन्हें रुद्र, क्रोध, उन्मत्त, कपाली, भीषण और संहारक भी कहा जाता है। भैरव को भैरवनाथ भी कहा जाता है और नाथ संप्रदाय में इनकी पूजा का विशेष महत्व रहा है। भैरव आराधना से शत्रु से मुक्ति, संकट, कोर्ट-कचहरी के मुकदमों में विजय प्राप्त होती है। इनकी आराधना से ही शनि का प्रकोप शांत होता है, रविवार और मंगलवार के दिन इनकी पूजा बहुत फलदायी है।

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