चंडीगढ़। देशभर में 20 अक्टूबर को करवा चौथ का व्रत शादीशुदा महिलाएं अपने पति के लिए निर्जला व्रत रखती हैं, रीति-रिवाज से पूजा-पाठ करती हैं ताकि हस्बेंड को लंबी उम्र और स्वस्थ जीवन प्राप्त हो सके। कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को करवा चौथ त्योहार सेलिब्रेट किया जाता है। इसमें प्रात: सरगी लेने के बाद चांद देखने तक निर्जला व्रत किया जाता है। हिंदू धर्म में प्रत्येक शादीशुदा महिलाओं के लिए करवा चौथ का व्रत बेहद महत्वपूर्ण होता है। व्रत और पूजा-पाठ के दौरान कई तरह के नियमों का अनुसरण किया जाता है। इस त्योहार में चंद्रदेव को अर्घ्य देने के बाद ही व्रत का पारण किया जाता है। सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि चंद्रदेव को जिस चीज से अर्घ्य देना चाहिए, वह है मिट्टी से बना करवा। चलिए जानते हैं आखिर करवाचौथ पर मिट्टी के करवे का ही क्यों इस्तेमाल किया जाता है?
करवा चौथ पर क्यों करते हैं मिट्टी के करवे का इस्तेमाल?
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, करवा चौथ पर मिट्टी के करवे का इस्तेमाल करना शुभ माना गया है। इसका संबंध सीता माता से है। मान्यता है कि जब माता सीता, माता द्रौपदी ने करवा चौथ का व्रत रखा था तो उन्होंने चंद्रदेव को अर्घ्य देने के लिए मिट्टी के करवे का ही इस्तेमाल किया था। हिंदू धर्म में कहा गया है कि करवा में अग्नि, हवा, पानी, मिट्टी, आकाश समाहित होता है। इसे शुभ और शुद्ध माना गया है। ऐसे में जब आप करवाचौथ के पूजा में मिट्टी के करवे का इस्तेमाल करती हैं तो शादीशुदा जीवन में प्यार और खुशियां बढ़ती हैं। सौभाग्य आता है।
मिट्टी के करवे की खासियत
मिट्टी का करवा आकार में छोटा सा होता है। यह देखने में मटके जैसा होता है। साथ ही इसमें एक टोंटी बनी होती है और इसी टोंटी के जरिए चंद्रदेव को अर्घ्य दिया जाता है। इसमें पूजा के दौरान शुद्ध जल भरा जाता है। रीति-रिवाज से पूजा-अर्चना की जाती है। जब शाम में चांद निकलता है तो करवे से अर्घ्य देकर, पूजा-अर्चना करके व्रत को सम्पन्न किया जाता है। पूजा की थाली भी खूबसूरत तरीके से सजाया जाता है। इसमें दीपक, कुमकुम, हल्दी, चावल, मिठाई, फूल, गंगाजल, छलनी, हलवा आदि रखना चाहिए।
करवे में और क्या-क्या भर सकते हैं
करवा माता का प्रतीक माना जाता है करवा। इसमें कोई भी चीज शुद्ध और पवित्र ही भरी जानी चाहिए। शुद्ध जल के साथ ही आप करवे में दूध, गंगाजल भी डाल सकते हैं।