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हर किसी की चिंता हरती है चिंतपूर्णी

Updated on Saturday, June 13, 2020 15:00 PM IST

चिंतपूर्णी मंदिर शक्तिपीठ मंदिरों में से एक है इस स्थान को हिन्दुओ के प्रमुख धार्मिक स्थानों में से एक माना गया है। पूरे भारत मे शक्तिपीठ की संख्या 51 है इसमें से एक स्थान जहाँ सती का अंश चरण के रूप में यहाँ गिरे। शक्तिपीठ से तात्पर्य यह है कि जब माता सती के शरीर को विष्णु जी के सुदर्शन चक्र से 51 भागो में बांटा गया था उस समय जिस-जिस स्थान पर गिरे, उन्हें शक्तिपीठ का दर्जा दिया गया है। चिंतपूर्णी धाम हिमाचल प्रदेश में स्थित है उस स्थान पर प्रकृति का सुंदर नज़ारा यात्रियों का मनमोह लेता है।
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार- चिंतपूर्णी
चिंतपूर्णी मंदिर शक्तिपीठ मंदिरों में से एक है शक्तिपीठ मंदिरों की संख्या पूरे भारतवर्ष में 51 है जिस स्थान पर शक्तिपीठ मंदिर है उस स्थान पर भगवान शिव का मंदिर स्थापित है। यह सभी मंदिर शिव और शक्ति से जुड़े हुए है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार इस सभी स्थानों पर देवी के अंश गिरे थे।
माता सती के अंश कैसे और क्यों गिरे
माता सती के पिता और शिव जी के ससुर राजा दक्ष शिव जी को अपने बराबर नहीं मानते थे जब राजा दक्ष ने यज्ञ का आयोजन किया उस में सती और शिव जी को निमंत्रण नहीं दिया गया, फिर भी माता सती उस यज्ञ में अकेले बिन बुलाए पहुँची। राजा दक्ष ने शिव जी को अत्यंत अपमानित किया, जिसे सती सहन ना कर सकी और वह हवन कुंड में कूद गई। शिवजी को जब यह बात पता चली तब वह बेहद क्रोधित हो उठे। अग्निकुंड से माता सती के शरीर को निकालकर तांडव करने लगे, जिस कारण पूरे ब्रह्माण्ड में हाहाकार मच गया।
भगवान विष्णु ने पूरे ब्रह्माण्ड को बचाने के लिए माता सती के शरीर को सुदर्शन चक्र से 51 भागो में बांट दिया। जहाँ यह अंग गिरे वह शक्तिपीठ बन गए। चिंतपूर्णी में चरण, नगरकोट में स्तनों के गिरने से बृजेश्वरी, हरियाणा के पंचकूला के पास मस्तिष्क गिरने से मनसा देवी, कोलकाता में केश गिरने के कारण महाकाली, कुरुक्षेत्र में टखना गिरने से भद्रकाली, आसाम में कोख गिरने के कारण कामाख्या देवी, नयन गिरने से नैना देवी आदि शक्तिपीठ बने। चिंतपूर्णी देवी को छिन्मस्तिका देवी भी कहा जाता है मंदिर के चारों ओर भगवान शंकर के मंदिर भी हैं।
चिंतपूर्णी धाम में वैसे तो सावन मास, संक्रांति, पूर्णिमा, अष्टमी में काफी संख्या में श्रद्धालु आते हैं किन्तु नवरात्रों में यहां श्रद्धालुओं की संख्या लाखों में पहुँच जाती है। दर्शन के लिए आने वाले श्रद्धालु माता के भोग के रूप में सूजी का हलवा, लड्डू बर्फी, खीर, बताशा, नारियल लाते हैं भक्तों की इच्छा पूरी होने और ध्वज़ और लाल चुनरी माता को भेंट चढ़ाते हैं।
माँ का भक्त- माईदास
चिंतपूर्णी धाम में मुख्य प्रवेश द्वार पर एक पत्थर दिखाई देगा उस पत्थर का नाम माईदास ही है। यह वही स्थान है जहां माता ने भक्त माईदास को दर्शन दिए थे। मंदिर की सीढिय़ों से उतरते हुए यहां उत्तर दिशा में तालाब है इसी तालाब के पश्चिमी दिशा में पंडित माईदास की समाधि है। पंडित माईदास के द्वारा ही माता के पावन धाम की खोज हुई।

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