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पंजाब

वित्त मंत्री हरपाल सिंह चीमा द्वारा बी.बी.एम.बी. में सी.आई.एस.एफ. तैनात करने के प्रस्ताव की कड़ी निंदा

Updated on Friday, July 11, 2025 20:10 PM IST

 

चंडीगढ़, 11 जुलाई: पंजाब के वित्त मंत्री एडवोकेट हरपाल सिंह चीमा ने आज पंजाब विधानसभा में भाखड़ा-ब्यास प्रबंधन बोर्ड (बी.बी.एम.बी.) के अपने संस्थानों में सी.आई.एस.एफ. कर्मियों की तैनाती के प्रस्ताव को रद्द करने वाले प्रस्ताव की जोरदार वकालत की। ऐतिहासिक घटनाओं का विस्तार से उल्लेख करते हुए उन्होंने पूर्ववर्ती सरकारों पर पंजाब के पानी के अधिकारों को खतरे में डालने और राज्य के कृषि क्षेत्र को तबाह करने का आरोप लगाया।

अपने भाषण की शुरुआत करते हुए वित्त मंत्री हरपाल सिंह चीमा ने 1954 में पंजाब और उत्तर प्रदेश के बीच हुए उस समझौते की याद दिलाई, जिसमें स्पष्ट रूप से कहा गया था कि यमुना के पानी का दो-तिहाई हिस्सा पंजाब को और एक-तिहाई उत्तर प्रदेश को दिया जाएगा। उन्होंने जोर देकर कहा कि यह समझौता पंजाब, उत्तर प्रदेश और केंद्र सरकार के रिकॉर्ड में दर्ज है। उन्होंने खेद जताया कि 1966 में पंजाबी सूबे के पुनर्गठन के दौरान सत्ताधारी पार्टी और पंजाबी सूबे की वकालत करने वालों ने इस महत्वपूर्ण समझौते की अनदेखी की। उन्होंने विशेष रूप से उस समय की कांग्रेस, अकाली दल और जनसंघ के नेताओं को निशाने पर लेते हुए कहा कि इन्होंने यमुना के पानी पर पंजाब के वैध दावे को छोड़ दिया।

पंजाब के पानी के अधिकारों पर विपक्षी दलों द्वारा किए गए ऐतिहासिक धोखों को किया उजागर

नेता प्रतिपक्ष पर तीखा हमला करते हुए उनकी “यू-टर्न” छवि पर की टिप्पणी

इसके बाद, उन्होंने सतलुज-यमुना लिंक नहर को लेकर हुए लंबे संघर्षों का ज़िक्र करते हुए बताया कि किस तरह ये विवाद सरकारों के गठन और पतन, युवाओं की जानों के नुकसान और बाद में राजनीतिक लाभ के लिए इन घटनाओं को भुनाने का कारण बने।

वित्त मंत्री ने आगे 1966 के पुनर्गठन कानून का उल्लेख किया, जिसने सतलुज के पानी को पंजाब और हरियाणा के बीच 60:40 के अनुपात में मनमाने ढंग से बांट दिया, जबकि रावी और ब्यास नदियों के पानी के संबंध में कोई प्रावधान नहीं किया गया। उन्होंने 1972 के सिंचाई आयोग का भी ज़िक्र किया, जिसने पहली बार यमुना के पानी का उल्लेख पंजाब के संबंध में किया, विशेष रूप से संगरूर और पटियाला जिलों (अब पाँच जिले शामिल हैं) के यमुना जल अधिकार को स्वीकार किया। उन्होंने कहा कि इसके बावजूद किसी भी राजनीतिक पार्टी ने पंजाब के इस दावे की पैरवी नहीं की और हरियाणा को दो-तिहाई पानी लेने की अनुमति दे दी गई।

वित्त मंत्री ने 1981 में कांग्रेस की केंद्र और राज्य सरकार के कार्यकाल के दौरान हुए समझौते की निंदा करते हुए कहा कि उस समय रावी नदी के कुल 17 एम.ए.एफ. पानी में से पंजाब को केवल 4 एम.ए.एफ., हरियाणा को 3.5 एम.ए.एफ. और राजस्थान को 8.6 एम.ए.एफ. दिया गया, जो पंजाब के साथ एक बड़ा धोखा था। उन्होंने सवाल उठाया कि जब हरियाणा और राजस्थान का रावी नदी के पानी से कोई वास्ता नहीं है, तो यह पानी उन्हें कैसे दिया गया? उन्होंने उस समय के मुख्यमंत्री दरबारा सिंह की भूमिका पर भी सवाल उठाए।

उन्होंने आगे बताया कि अब मुख्यमंत्री भगवंत मान ने केंद्र सरकार को एक प्रस्ताव भेजा है, जिसमें मांग की गई है कि पंजाब को यमुना के पानी का 60 प्रतिशत हिस्सा मिले और इसी आधार पर यमुना-सतलुज लिंक नहर का निर्माण हो। उन्होंने कहा कि पिछले 70 वर्षों में बी.बी.एम.बी. का कभी ऑडिट नहीं हुआ, इसलिए पिछले 9 महीनों से बी.बी.एम.बी. के 104 करोड़ रुपये के फंड रोके गए हैं, और अब उसका ऑडिट करवाने की मांग की गई है। उन्होंने पूर्ववर्ती सरकारों पर आरोप लगाया कि उन्होंने लगातार बी.बी.एम.बी. को फंड तो दिए, लेकिन पंजाब के हितों की कभी रक्षा नहीं की।

प्रस्ताव पर चर्चा करते वित्त मंत्री ने बताया कि 2021 में कांग्रेस सरकार के समय तत्कालीन मुख्यमंत्री चरनजीत सिंह चन्नी ने बी.बी.एम.बी. की सुरक्षा सी.आई.एस.एफ. को सौंपने की सहमति दी थी, जबकि पिछले 70 वर्षों से पंजाब पुलिस यह ज़िम्मेदारी पूरी निष्ठा से निभा रही थी। उन्होंने कहा कि सी.आई.एस.एफ. की तैनाती से पंजाब पर हर साल लगभग 50 करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा, जिसकी कोई आवश्यकता नहीं है। उन्होंने कांग्रेस पर पंजाब के किसानों के जल अधिकारों को कमजोर करने के लिए केंद्र सरकार से मिलीभगत करने का आरोप लगाया।

विपक्ष के नेता प्रताप सिंह बाजवा द्वारा पाकिस्तान सीमा से लगे 50 किलोमीटर क्षेत्र में बी.एस.एफ. को अधिकार देने के आरोपों पर जवाब देते हुए वित्त मंत्री चीमा ने स्पष्ट किया कि यह अनुमति भी कांग्रेस सरकार के ही कार्यकाल में दी गई थी। उन्होंने इस मुद्दे पर खुली बहस की चुनौती देते हुए नेता प्रतिपक्ष पर तंज कसा कि वह “यू-टर्न” लेने के लिए मशहूर हैं।

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