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हयग्रीव जयंती : जानिए श्रीहरि विष्णु के हयग्रीव अवतार की कथा

Updated on Sunday, August 18, 2024 08:29 AM IST

चंडीगढ़ । श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन हयग्रीव जयंती मनाई जाती है। भगवान विष्णु जी के 24 अवतारों में से ही 16वां अवतार है हयग्रीव। हयग्रीव अवतार की पूजा का प्रचलन दक्षिण भारत में अधिक है। वह भी केरल में ज्यादा प्रचलित है। ऐसा माना जाता है कि भगवान हयग्रीव ने सभी वेदों को ब्रह्मा को पुनः प्रदान किया था। इस बार 19 अगस्त 2024 को यह जयंती मनाई जाएगी। इस अवतार के संबंध में दो कथाएं मिलती है।

पहली कथा: पहली यह कि एक बार मधु और कैटभ नाम के दो शक्तिशाली राक्षस ब्रह्माजी से वेदों का हरण कर रसातल में पहुंच गए। वेदों का हरण हो जाने से ब्रह्माजी बहुत दुःखी हुए और भगवान विष्णु के पास पहुंचे। तब भगवान ने हयग्रीव अवतार लिया। इस अवतार में भगवान विष्णु की गर्दन और मुख घोड़े के समान थी। तब भगवान हयग्रीव रसातल में पहुंचे और मधु-कैटभ का वध कर वेद पुनः भगवान ब्रह्मा को दे दिए।

दूसरी कथा : दूसरी कथा के अनुसार एक समय की बात है कि एक बार भगवान विष्णु देवी लक्ष्मी के सुंदर रूप को देखकर मुस्कुराने लगे। देवी लक्ष्मी को लगा कि वे हंसी उड़ा रहे हैं तो बिना सोचे समझे उन्होंने शाप दे दिया कि आपका सिर धड़ से अलग हो जाए। इसमें भी प्रभु की माया थी। फिर एक बार विष्णुजी युद्ध करते हुए थक गए तो उन्होंने अपने धनुष की प्रत्यंचा चढ़ाकर उसे धरती पर टिकाया और बाण की नोक पर अपना सिर रखकर योग निंद्रा में सो गए।

फिर हुआ यह कि दूसरी ओर हयग्रीव नाम का एक असुर महामाया का भयंकर तप कर रहा था। भगवती ने उसे तामसी शक्ति के रूप में दर्शन दिया और कहा कि वर मांगो। उसने अमरदा का वरदान मांगा तो माता ने कहा कि संसार में जिसका जन्म हुआ उसे तो मरना ही होगा। यह तो विधि का विधान है। तुम कोई दूसरा वर मांगो। तब उसने कहा कि अच्छा तो मेरी अभिलाषा यह है कि मेरी मृत्यु हयग्रीव के हाथों हो। माता ने कहा कि ऐसा ही होगा। यह कह कर भगवती अंतर्ध्यान हो गईं। हयग्रीव को लगा की अब मेरी मृत्यु तो मेरे ही हाथों होगी, अतः मैं अजर अमर हो गया, परंतु वह कुछ समझ नहीं पाया था।

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