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धर्म कर्म

सिर ढक कर पूजा करने के महत्व

Updated on Sunday, June 30, 2024 13:18 PM IST

चंडीगढ़। हिंदू धर्म दुनिया का महान धर्म है। इसी धर्म की बातों को अन्य कई धर्मों में सम्मलित किया गया है। सनातन हिंदू धर्म में पूजा, यज्ञ या कोई धार्मिक अनुष्ठान करते समय सिर ढकने की परंपरा है। कई लोग देवियों के मंदिर में दर्शन करते हैं तब भी सिर ढककर ही दर्शन करते हैं। हालांकि पूजा, यज्ञ या कोई धार्मिक अनुष्ठान करते वक्त सिर ढकना जरूरी होता है। आओ जानते हैं क्यों जरूरी है।

धार्मिक मान्यताःगरूढ़ पुराण के अनुसार पूजा और प्रार्थना के दौरान सिर ढका रहता है तो हमारा मन एकाग्र रहकर प्रभु भक्ति में लगा रहता है। हिन्दू धर्म के अनुसार सिर के बीचोबीच सहस्रार चक्र होता है जिसे ब्रह्म रन्ध्र भी कहते हैं। हमारे शरीर में 10 द्वार होते हैं- 2 नासिका, 2 आंख, 2 कान, 1 मुंह, 2 गुप्तांग और सिर के मध्य भाग में 10वां द्वार होता है। दशम द्वार के माध्यम से ही परमात्मा से साक्षात्कार कर पा सकते हैं। इसीलिए पूजा के समय या मंदिर में प्रार्थना करने के समय सिर को ढककर रखने से मन एकाग्र बना रहता है। पूजा के समय पुरुषों द्वारा शिखा बांधने को लेकर भी यही मान्यता है।

माना जाता है कि हमारे बालों से नकारात्मक शक्तियां मस्तिष्क में प्रवेश करती हैं इसलिए पूजा के दौरान सिर ढकते हैं। पूजा के दौरान हमारे भीतर सकारात्मक शक्ति का निर्माण होता है। यह शक्ति भीतर बनी रहे इसलिए भी सिर ढकते हैं।

भगवान को सम्मान देने के लिए भी पूजा या अनुष्ठान के दौरान सिर ढका जाता है। कहा जाता है कि जिसको आप आदर देते हैं, उनके आगे हमेशा सिर ढककर जाते हैं। इसी कारण से कई महिलाएं अभी भी जब भी अपने सास-ससुर या बड़ों से मिलती हैं, तो सिर ढक लेती हैं। इसी कारण भी सिर ढकते हैं।

वैज्ञानिक कारणःपूजा के दौरान हमारे बाल पूजा स्थल पर न गिरे इसलिए सिर ढका जाता है। बाल के पूजा की थाली या यज्ञ आदि अनुष्ठना में गिरने से वह पूजा खंडित मानी जाती है।

बालों की चुंबकीय शक्ति के कारण सिर के बालों में रोग फैलाने वाले कीटाणु आसानी से चिपक जाते हैं। ये कीटाणु बालों से शरीर के भीतर प्रवेश कर जाते हैं जिससे वे व्यक्ति को रोगी बनाते हैं। यह भी कहते हैं कि आकाशीय विद्युतीय तरंगें खुले सिर वाले व्यक्तियों के भीतर प्रवेश कर क्रोध, सिरदर्द, आंखों में कमजोरी आदि रोगों को जन्म देती हैं। इसलिए सिर ढकना जरूरी हो जाता है।

निष्कर्ष : किसी भी प्रकार की पूजा करते वक्त, यज्ञ करते वक्त, विवाह करते वक्त और परिक्रमा लेते वक्त आम व्यक्ति को सिर ढकना जरूरी है। महिलाएं अक्सर ओढ़नी या दुपट्टे से सिर ढकती हैं, तो पुरुष पगड़ी, टोपी या रूमाल से सिर ढककर मंदिर जाता है। हालांकि पंडित इसलिए सिर नहीं ढंकते, क्योंकि उनके सिर पर चोटी होती है और वे दिन-रात मंदिर की ही सेवा में लगे रहते हैं। इसके और भी कारण होते हैं।

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