चंडीगढ़। इस वर्ष निर्जला एकादशी का व्रत 18 जून को आ रहा है। श्री खेड़ा शिव मंदिर, सेक्टर 28 डी के प्रधान पुजारी आचार्य ईश्वर चन्द्र शास्त्री, जो श्री देवालय पूजक परिषद् चंडीगढ़ के पूर्व प्रधान भी रहें हैं, ने जानकारी देते हुए बताया कि सनातन धर्म में व्रत, पूजा, अनुष्ठान आदि का बहुत महत्व बताया गया है। व्रतों में भी एकादशी व्रत को सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। एकादशी तिथि भगवान श्रीलक्ष्मीनारायण जी को समर्पित है। एक वर्ष में 24 एकादशियां आती हैं, सभी का अपना-अपना महत्व है। परंतु जेष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। इसे निर्जला एकादशी कहते हैं। निर्जला का अर्थ है बिना जल के। अर्थात् इस व्रत में अन्न की तो बात ही क्या, जल का भी परित्याग करना होता है। इस व्रत में जल भी ग्रहण नहीं किया जाता। पांडु पुत्र भीमसेन ने इस एकादशी का व्रत बड़ी श्रद्धा के साथ किया था इसीलिए इसे भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है। निर्जला एकादशी के दिन भगवान श्री लक्ष्मी नारायण की पूजा करें ओम् नमो भगवते वासुदेवाय इस मंत्र का जाप करें। विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें। भगवान का सुमिरन व सत्संग करके अपना समय व्यतीत करें। अगले दिन द्वादशी को व्रत का पारण करें। इस प्रकार व्रत करने से साधक के अंदर सकारात्मकता आती है, भगवान प्रसन्न होते हैं और साधक के मनोरथ पूर्ण होते हैं। इस बार निर्जला एकादशी का व्रत 18 जून को किया जाएगा। संपूर्णेकादशी यत्र, प्रभाते पुनरेव च। सर्वैरेवोत्तरा कार्या, परतो द्वादशी यदि।
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इस शास्त्र निर्णय के अनुसार 18 जून को ही स्मार्त एवं वैष्णव दोनों को ही व्रत करना चाहिए। एकादशी के दिन दान का भी महत्व बताया गया है। निर्जला एकादशी-व्रत के साथ-साथ दान की भी महिमा है। इस दिन जल पूरित घाट दान करना चाहिए। फल, मिश्री, घी, बर्तन, पंखा आदि का दान करना भी श्रेष्ठ माना गया है।