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प्रदोष व्रत पर करें इस कथा का पाठ, शुरू हो जाएंगे शुभ फलों की प्राप्ति

Updated on Sunday, February 09, 2025 11:28 AM IST

नई दिल्ली। प्रदोष व्रत प्रत्येक महीने आता है। इस दिन लोग भगवान शिव और देवी पार्वती की पूजा करते हैं। प्रदोष व्रत पर शाम के समय पूजा होती है। ऐसा माना जाता है कि यह व्रत आध्यात्मिक विकास, समृद्धि और जीवन की सभी बाधाओं का नाश करता है। यह व्रत हिंदू धर्म में सबसे शुभ और शक्तिशाली अनुष्ठानों में से एक माना जाता है, जिसे लोग पूर्ण श्रद्धा के साथ मनाते हैं। वहीं, जो साधक इस कठिन व्रत का पालन कर रहे हैं, उन्हें इसकी व्रत कथा का पाठ जरूर करना चाहिए, क्योंकि यह पूजा का अहम हिस्सा है, तो आइए यहां पढ़ते हैं।

प्रदोष व्रत कथा

एक समय की बात है अंबापुर गांव में एक ब्रह्माणी वास करती थी। उसके पति का निधन हो गया था, जिस वजह से वह भिक्षा मांगकर अपना जीवन व्यतीत कर रही थी। एक दिन जब वह भिक्षा मांगकर लौट रही थी, तो उसे दो छोटे बच्चे मिलें जो अकेले थे, जिन्हें देखकर वह काफी परेशान हो गई थी।

वह विचार करने लगी कि इन दोनों बालक के माता-पिता कौन हैं? इसके बाद वह दोनों बच्चों को अपने साथ घर ले आई। कुछ समय के बाद वह बालक बड़े हो गएं। एक दिन ब्रह्माणी दोनों बच्चों को लेकर ऋषि शांडिल्य के पास जा पहुंची। ऋषि शांडिल्य को नमस्कार कर वह दोनों बालकों के माता-पिता के बारे में जानने की इच्छा व्यक्त की।

तब ऋषि शांडिल्य ने बताया कि ''हे देवी! ये दोनों बालक विदर्भ नरेश के राजकुमार हैं। गंदर्भ नरेश के आक्रमण से इनका राजपाट छीन गया है। अतः ये दोनों राज्य से पदच्युत हो गए हैं।'' यह सुन ब्राह्मणी ने कहा कि ''हे ऋषिवर! ऐसा कोई उपाय बताएं कि इनका राजपाट वापस मिल जाए।'' जिसपर ऋषि शांडिल्य ने उन्हें प्रदोष व्रत करने की सलाह दी। इसके बाद ब्राह्मणी और दोनों राजकुमारों ने प्रदोष व्रत का पालन भाव के साथ किया। फिर उन दिनों विदर्भ नरेश के बड़े राजकुमार की मुलाकात अंशुमती से हुई।

दोनों विवाह करने के लिए राजी हो गए। यह जान अंशुमती के पिता ने गंदर्भ नरेश के विरुद्ध युद्ध में राजकुमारों की सहायता की, जिससे राजकुमारों को युद्ध में विजय प्राप्त हुई। प्रदोष व्रत के प्रभाव से उन राजकुमारों को उनका राजपाट फिर से वापस मिल गया। इससे प्रसन्न होकर उन राजकुमारों ने ब्राह्मणी को दरबार में खास स्थान दिया, जिससे ब्राह्मणी की गरीबी दूर हो गई है और वह भी शिव भक्ति में लीन रहने लगी।

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