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Chandigarh

विमल कालिया के कविता संग्रह निंबोलियां का विमोचन

May 05, 2024 06:40 PM

चंडीगढ़। अभिव्यक्ति साहित्यिक संस्था के तत्वावधान में सेंट्रल स्टेट लाइब्रेरी के सहयोग से अभिव्यक्ति के 51वें वर्ष की शुरुआत में कविता गोष्ठी का आयोजन किया गया जिसमें डॉक्टर विमल कालिया विमल के कविता संग्रह निंबोलियां का विमोचन हुआ। कार्यक्रम का संचालन रंगकर्मी , साहित्यकार और अभिव्यक्ति के संयोजक विजय कपूर ने किया।
निंबोलिया डॉक्टर विमल का दूसरा काव्य संग्रह है। इससे पहले इंद्रधनुष का आठवां रंग आ चुका है। इसके अतिरिक्त इनके तीन कहानी संग्रह शुक्र है मैं औरत नहीं, मैं प्रेम चंद क्यों नहीं एवं अर्धनारीश्वर छप चुके हैं।
इस अवसर पर डॉक्टर प्रसून प्रसाद ने अपनी टिप्पणी में कहा " डॉ विमल कालिया सामान्य सी प्रतीत हो रही स्तिथियों के गर्भ में जाकर उनमें गहरे अर्थ भरने में सिद्धहस्त हैं।अत्यंत गौण लगने वाले अनुभव भी इनकी अंतश्चेतना में कुछ स्पंदन पैदा करते हैं । वे इन्हें एक सृजनात्मक परेशानी की ओर ले चलते हैं जिससे मिलने वाली मुक्ति ही इस संग्रह की कविताओं में है।"
विजय कपूर ने अपनी टिप्पणी में कहा " डॉक्टर विमल ने अपने काव्य-संग्रह के विषयों की सर्जना शक्ति से भाषा और शिल्प को एक नए ढंग से गढ़ा है। अपनी काव्यात्मक संवेदनाओं से आपके हृदय पर अंकित होने की क्षमता रखते हैं।"
डॉक्टर दलजीत कौर ने कहा " कविता लिखना एक पवित्र कार्य है और कवि का दायित्व है कि वह अपनी कविता को निरंतर तराशे।डॉ० विमल कालिया का काव्य -संग्रह (निंबोलियाँ)बिम्बों में नवीनता लिए ,अनेक सवाल करता ,कुछ यथार्थ व्यक्त करता ,मानसिक -वैचारिक तनाव को अभिव्यक्ति देता है।"

 
सृष्टि प्रकाशन के विजय सोदाई ने पुस्तक को अंतरात्मा की अभिव्यक्ति बताया। डॉक्टर विमल कालिया ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा " मैं ऐसा ही हूं। संवेदनाओं के असर को छुपा नहीं पाता। विचारों और भावों को काव्य की धारा में पिरोता रहता हूं।"
गोष्ठी के दूसरे सत्र में कविताओं की बहार थी। छंद बंध और छंद मुक्त दोनों ही तरह की कविताओं का बोलोबाला रहा।
जिसमें दर्शना सुभाष पाहवा ने मैंने उस का हाथ पकड़ा, हाथ छुड़ा कर, अंदर भाग जाती। मेरे अंदर की औरत। विजय कपूर ने
क्यों नहीं इस तरह घुस जाते हो भीड़ की हर सोच में कि हर कोई बच सके उन्मादी रोष में। सुशीरा गुलाटी ने हां वो गरीब है, पर दिल में तो उसके भी आशाएं छिपी हैं, उसके हिस्से में है खुला आसमां, फिर चाहे कुछ गज ज़मीन नहीं है। तुम नाराज ना हुआ करो. . . वीना सेठी ने कभी कभी तो लगता है हम खुदगर्ज हैं इतने जहाँ भी जाए सब रास्ते जा मिलते हैं तुमसे। डॉक्टर विमल कालिया ने दिन भर बैठ कर तुम्हारा ही ख्याल बुनता हूं, तुम्हारी ही खामोशी को सुनता हूं। अश्वनी भीम ने कोई चाहे वोट से, कोई चाहे नोट से कोई चाहे जीतना, चुनाव लूट खसोट से नेतावी तिकड़मों के, खूब समाचार देखते रहे चुनाव सिर आ गया, अखबार देखते रहे। रेखा मित्तल ने खालीपन हां,मेरे खालीपन से ही भरा हैं तुम्हारा यह हरा-भरा घर ।
करीना मदान ने मां बस मां ही काफी है। डॉक्टर प्रसून प्रसाद ने बनना एक अकेला पेड़ जो पूरा जंगल ही खड़ा कर देता है। डॉक्टर दलजीत कौर ने लुप्त हो रही है रीढ़ की हड्डी, डॉक्टर अशोक वढेरा ने ख्वाब बुने थे कुछ ख्वाब जो अब उधड़ने से लगे हैं। मोनिका कटारिया ने कैनवास था कूँची भी थी, सुंदर सपनों की सूची भी थी। राजिंदर कौर सराओ ने तू मेरे हासेयां दा साथी ता बनिया
पर मेरे दुख ते इक वी हांझू ना केरेया किवें कहां के तू सुख और दुख दा साथी है मेरा । सीमा गुप्ता ने वक़्त भी कैसी कैसी परीक्षा
लेता है , किसी के लौट आने की हर उम्मीद का दरवाज़ा हर खिड़की कस के बंद कर देता है।
कुलतारन छतवाल ने "अकेला हूं, उदास हूं, पर कहूंगा नहीं" राजेश बेनीवाल ने अंग्रेजी की कविता नीदर माय नाइट्स आर गुड
नोर माय डेज, ए पाल ऑफ़ ग्लूम स्प्रेड्स विद मॉर्निंग रेज़, जैसी सुंदर और सारगर्भित कविताओं का पाठ किया। गोष्ठी के तीसरे सत्र में कहानी और व्यंग्य का पाठ हुआ, जिसमें अश्वनी भीम ने बस अड्डा और सब्जी मंडी/ भोलू नाम का दिलचस्प व्यंग्य सुनाया। इस कार्यक्रम में डॉक्टर नवीन गुप्ता, रश्मि शर्मा, डॉक्टर सत्यभामा,हरिंदर रेखी, बबिता कपूर, पुष्पिंदर गुसाईं,गौरव आहूजा, किशन गाचली ने भी भाग लिया।

 

 
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