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भिवानी: सेवा से निवृत हुए ओमप्रकाश का पर्यावरण की सेवा में जारी रहेगा सफर

संजय कुमार मेहरा | February 03, 2022 11:38 AM

भिवानी: सेवा से निवृत हुए ओमप्रकाश का पर्यावरण की सेवा में जारी रहेगा सफर

-बीडीपीओ कार्यालय से बतौर उपाधीक्षक सेवानिवृत हुए हैं ओमप्रकाश
-जहां-जहां पोस्टिंग हुई, वहीं पर पेड़ लगाकर करते रहे हरियाली
-पर्यावरण प्रेमी के रूप में आगे भी सफर रहेगा जारी

 

संजय कुमार मेहरा

भिवानी। टहनी टूटे क्षमा मांगने वाली प्रथा चलाऊंगा, चली कुल्हाड़ी अगर तने में इंकलाब चिल्लाऊंगा, आंदोलन की मांग उठी तो चिपको फिर से गाऊंगा, पग-पग चलकर क्षण-क्षण अपना पर्यावरण बचाऊंगा...। ऐसी ही सोच के साथ अपने सेवाकाल में पर्यावरण के प्रति काम करते रहे उपाधीक्षक ओमप्रकाश।

ओमप्रकाश भगवान शिव के नाम ओम के प्रकाश से बना है। यह शहर की उस शख्सियत का नाम है, जिसने सरकारी सेवा में रहते हुए अपने नाम को सदा प्रकाशमान रखा। बीडीपीओ कार्यालय से उपाधीक्षक पद से सेवानिवृत हुए ओमप्रकाश से सीख सकते हैं कि हमें नौकरी के साथ क्या ऐसा करना चाहिए, जो पीढिय़ों तक स्मरण रह सके।

 

सात अक्टूबर 1981 को डीसी कार्यालय भिवानी में बतौर स्टेनो टाइपिस्ट (एडहॉक) उनकी नौकरी लगी थी। 23 दिसम्बर 1982 तक वे डीसी कार्यालय में रहे। पांच महीने एसडीएम सिवानी में स्टेनो रहे। इसके बाद 9 फरवरी 1983 को वे नियमित हुए और खंड विकास एवं पंचायत कार्यालय में नियुक्ति हुई।

 

वर्ष 1987 में उनका तबादला दादरी, वर्ष 1989 में तबादला तोशाम, वर्ष 1996 में जिला परिषद हिसार और इसी साल ही उनका तबादला जिला परिषद नारनौल में हो गया। यहां वे तीन साल तक रहे। इसके बाद वर्ष 1999 में वे जिला परिषद भिवानी में आ गए। दिसम्बर 2000 में वे परमोट होकर अकाउंटेंट बनें। वर्ष 2001 में जिला परिषद से एडीसी कार्यालय भिवानी, वर्ष 2004 में बीडीओ कार्यालय कैरू में रहे।

 

वर्ष 2006 में सीपीएस धर्मबीर के बनें पीए
फरवरी 2006 में वे तत्कालीन हुड्डा सरकार में मुख्य संसदीय सचिव बनें धर्मबीर सिंह के निजी सहायक के रूप में डेपुटेशन पर लगाए गए। वर्ष 2014 में धर्मबीर सिंह के सांसद बनने के बाद वे भिवानी ब्लॉक में आ गए। वर्ष 2015 में वे पंचायती राज कार्यालय के एक्सईएन कार्यालय में आए और 2017 तक उनकी नियुक्ति रही। इसके बाद फिर से वे बीडीपीओ कार्यालय भिवानी में चले गए। अब 2022 में डीडीपीओ कार्यालय से बतौर उपाधीक्षक (डिप्टी सुपरीटेंडेंट) सेवानिवृत हुए हैं।

  

प्रो. तेजाराम को मानते हैं पे्ररणा स्रोत
वैसे तो वर्ष 1999 से उनकी पर्यावरण के प्रति रुचि बढ़ी और पेड़ लगाने का काम शुरू किया। इस क्षेत्र में और अधिक काम हो, इसके लिए उन्हें प्रेरणा मिली प्रो. तेजाराम से। वर्ष 2000 में उनकी मुलाकात प्रो. तेजाराम से हुई थी, जो खुद एक पर्यावरण प्रेमी हैं। उनकी प्रेरणा को आगे बढ़ाते हुए ओमप्रकाश जहां भी नियुक्त हुए, वहीं पर पेड़ के रूप में अपनी निशानी छोड़ते रहे।

 

20-22 साल तक जारी रहा सफर
उनका यह सफर 20-22 साल तक जारी रहे और अब सेवानिवृत के बाद वे पूरा समय पर्यावरण के लिए ही लगाएंगे। उनका मानना है कि हम अपने जीवनकाल में किसी को व्यक्तिगत रूप से कुछ भी ना दे पाएं तो पेड़ लगाएं। पेड़ों के माध्यम से पर्यावरण सुधारकर हम प्रकृति, इंसान को बहुत कुछ दे सकते हैं।

 
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