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मासिक धर्म भी अन्य प्रक्रियाओं की तरह सामान्य प्रक्रिया परंतु इस बारे खुलकर न बोलना चिंताजनक:रेनु माथुर

June 02, 2020 11:09 AM

मोहाली। जिस तरह से इंसानी जिंदगी में सोना, जागना, खाना-पीना, उठना-बैठना आदि सामान्य प्रक्रियाएं हैं उसी तरह महिलाओं को मासिक धर्म आना भी सामान्य प्रक्रिया है। इसी के चलते संसार चलायमान है। यानि महिलाएं बच्चों को जन्म देती हैं। परंतु इतनी महत्वपूर्ण प्रक्रिया होने के बावजूद भी हमारे समाज विशेषकर महिलाओं में मासिक धर्म पर खुलकर बातचीत न करना सोचने का गंभीर विषय है।

उक्त विचार पैड वूमैन के नाम से प्रसिद्ध तथा विश्व प्रसिद्ध टैरो कार्ड रीडर/स्प्रीचुअल गाइड श्रीमति रेनु माथुर ने व्यक्त किए। वह यहां किसी के निजी समागम में शामिल होने आई हुई थी। उन्होंने कहा कि मासिक धर्म जो महिलाओं में लगभग नौ से 17 वर्ष की आयु के मध्य शुरू होता है। इसे विभिन्न नामों जैसे पीरियड्स, रजोधर्म, महावारी, मेंस्ट्रुअल, एमसी भी कहा जाता है। उन्होंने कहा कि महिलाओं में यह एक सामान्य प्रक्रिया है और इसके माध्यम से महिलाओं के शरीर की गंदगी साफ होती है ओर उन्हें अनेक तरह की बीमारियों से बचाती हैं। उनके अनुसार हमारे समाज विशेष कर मलिन बस्तियों एवं झौंपड़पट्टी में रहने वाली लड़कियों/महिलाओं में इस संदर्भ में जागरूकता की भारी कमी है।


देश की 12 से 15 प्रतिशत महिलाएं मासिक धर्म के समय पेड़ों की छाल, राख, मुलतानी मिट्टी आदि का उपयोग करती हैं

उन्होंने कहा कि इस बार संयुक्त राष्ट्र मासिक धर्म स्वच्छता दिवस का टॉपिक पीरियड्स ऑफ डांट स्टॉप इन पेंडिमिक्स है। उन्होंने कहा कि हालांकि केंद्र व राज्य सरकारों ने लड़कियों एवं महिलाओं की सुविधा के लिए स्कूलों एवं रेलवे स्टेशनों आदि जैसे अनेक सार्वजनिक स्थलों पर वेंडिंग मशीन लगाई हैं। लॉकडाउन के चलते जब देश में सबकुछ बंद है और लोग घरों से बाहर नहीं निकल रहे हैं तो वेंडिंग मशीनों का लाभ किस तरह से मिल सकता है। दूसरी और झुग्गी झौंपडिय़ों/मलिन बस्तियों अथवा गरीबी रेखा से नीचे जीवन व्यतीत करने वाली महिलाएं कहां से पैड लांए? क्या आपदा के समय पीरियड रूक जाएंगे?

 
श्रीमति माथुर ने बताया कि उन्होंने गरीब लड़कियों/महिलाओं को साफ कपड़े से पैड बनाने का प्रशिक्षण देकर न केवल उन्हें अपने लिए बल्कि समाज की अन्य महिलाओं के लिए पैड बनाकर मार्किटिंग करना सिखाया है ताकि वे आर्थिक तौर पर कुछ आत्मनिर्भर भी बन सकें। उन्होंने कहा कि देश में किए गए एक सर्वे के अनुसार आज के दौर में भी 12 से 15 प्रतिशत गरीब महिलाएं मासिक धर्म के समय पेड़ों की छाल, राख, मुलतानी मिट्टी, आदि का उपयोग करती हैं जो गंभीर चिंता का विषय है। उन्होंने बताया कि वह पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, चंडीगढ़ व दिल्ली की वालंटियरों को वीडियो कॉल या ऑनलाइन पैड बनाने की ट्रेनिंग दे रही हैं।

उन्होंने बताया कि कुछ वर्ष पहले केरल में बाढ़ आई तो उन्होंने वहां ढाई लाख कपड़े के पैड बनाकर भेजे थे। उन्होंने कहा कि जहां बाजारी पैड हर किसी की पहुंच में नहीं होते और इनके कारण नालियां व सीवरेज आदि भी जाम हो जाते हैं। वहीं कपड़े से बने पैड न केवल अति सस्ते होते हैं बल्कि पर्यावरण साफ रखने में भी मददगार होते हैं। उन्होंने कहा कि हालांकि यह अतिमहत्वपूर्ण विषय है और हर लडक़ी या महिला को इस प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है।

परंतु परिवारों में इस पर खुलकर बातचीत नहीं होती है। इसका मुख्य कारण है सदियों से हमारे यहां पुरूष प्रधान समाज है। जिसके चलते महिलाओं को खुलकर बोलने का अधिकार ही नहीं है। उन्होंने कहा कि यह सामान्य प्रक्रिया है और लड़कियों एवं महिलाओं को मासिक धर्म स्वच्छता से जुडऩे के लिए जागरूक करना चाहिए। प्रत्येक जागरूक नागरिक का कर्तव्य है कि वह अपने घर की बहन-बेटियों को छोटी आयु से जागरुक करना शुरू करे।

 

उन्होंने बताया कि नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (2015-16) की रिपोर्ट के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों में 45.5 प्रतिशत और शहरी क्षेत्रों में 77.5 प्रतिशत महिलाएं मासिक धर्म के समय सैनेट्री नैपकिन का प्रयोग करती हैं। यदि कुल मिलाकर देखा जाए तो सिर्फ 57.6 प्रतिशत महिलाएं ही इसका इस्तेमाल करती हैं।

 
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