चंडीगढ़ ,10 दिसंबर ( न्यूज़ अपडेट इंडिया ) पूर्व सेनाध्यक्ष वीपी मलिक ने स्ट्रेटजी और प्लान के बीच फर्क बताते हुए कठोर शब्दों में भारतीय राजनीति पर सवाल उठाया। उनके अनुसार, प्लान कामयाब हो यह जरूरी नहीं, मगर स्ट्रेटजी का कामयाब होना जरूरी है।
सही स्ट्रेटजी नहीं होने से समस्याएं
मलिक ने कहा, प्लान और स्ट्रेटजी में अंतर है। स्ट्रेटजी बिल्कुल साफ होनी चाहिए। आपको क्या चाहिए इसका पता होना चाहिए। लेकिन, देश में आज तक नेशनल सिक्योरिटी स्ट्रेटजी को लेकर कभी साफ तौर पर कुछ नहीं लिखा गया। ऐसी कई गलतियां हैं, जो सही स्ट्रेटजी न होने की वजह से आज देश के लिए समस्या बन गई हैं और इनका खामियाजा हम आज भी भुगत रहे हैं। पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल वीपी मलिक ने भारतीय राजनीति पर सवाल उठाते हुए ये बातें कहीं।
पहली गलती- नेहरु का संरा जाना
लेक क्लब में मिलिट्री लिटरेचर फेस्टिवल के अंतिम दिन शनिवार को वीपी मलिक ने नेशनल सिक्योरिटी स्ट्रेटजी पर खुलकर बात की। उन्होंने कहा कि पहली गलती प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की ओर से 1948 में कश्मीर विवाद के लिए युनाइटेड नेशन (संयुक्त राष्ट्र)जाना था, जबकि यह मसला हमें उसी वक्त साफ तौर पर पाकिस्तान से सुलझा लेना चाहिए था। इसी वजह से आज तक कश्मीर में संघर्ष जारी है।
चंडीगढ़ में मिलिट्री लिटरेचर फेस्टिवल में कैप्टन अमरिंदर सिंह और अन्य।
दूसरी गलती- चीन-पाकिस्तान से हमारी सीमा तय नहीं
जनरल मलिक ने बताया कि भारत को आजादी के बाद कई युद्धों का सामना करना पड़ा। इस वजह से भी स्ट्रेटजी बनाने में समय लगा। पूर्व प्रधानमंत्री नेहरू ने पाकिस्तान और चीन दोनों से ही पक्के तौर पर सीमा तय नहीं की। हमने तिब्बत को अपने हाथों से जाने दिया। बाद में इसकी अहमियत हमें मालूम पड़ी। हालांकि, 1962 में चीन की लड़ाई के दौरान हमारे पास मौका था अपनी सीमा तय करने का, लेकिन यह मौका भी हमने कोई स्ट्रेटजी न होने की वजह से खो दिया।
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तीसरी गलती- 1965 की लड़ाई के बाद हाजीपुर पोस्ट वापस देना
जनरल मलिक बोले कि 1965 में पाकिस्तान के साथ हुई जंग में हम हाजीपुर पोस्ट तक पहंच गए थे। यह वह पोस्ट है जहां से आज कई आतंकी कश्मीर में घुसते हैं। उस दौरान यह पोस्ट हमने उन्हें दी जो देश के इतिहास में हमारी बड़ी गलती है।
चौथी गलती- 1972 में पाकिस्तानी कैदी सैनिकों को छोड़ना
जनरल मलिक ने कहा कि हमारी सरकार की वजह से हमें समय-समय पर जंग के बाद कई उतार-चढ़ाव देखने पड़े। 1971 में पाकिस्तान के साथ बांग्लादेश के लिए हुई जंग के बाद 1972 में करीब 93,000 पाकिस्तानी सैनिकों को भारत सरकार ने छोड़ दिया। उस समय हमारे पास कई शर्ते पूरी करने का समय था, जिसमें आज सरहद जैसे मुद्दे सुलझ जाते।