चंडीगढ़,10 दिसंबर ( न्यूज़ अपडेट इंडिया ) : यह बहुत दुखद है कि इतिहास के दो टुकड़े हो गए। ये टुकड़े आज दो देशों के रूप में हैं। एक ¨हदुस्तान और दूसरा पाकिस्तान। दोनों के बीच सिख इतिहास भी बंट गया। मैंने कई बार पाकिस्तान में जाकर वहां सिख इतिहास से जुड़ी आर्काइव गैलरी तक जाने की कोशिश की, मगर नाकाम रहा। वहां जाकर हमें सिख इतिहास और खासकर एंग्लो सिख वॉर से जुड़ी कई महत्वपूर्ण जानकारी मिल सकती है। इतिहासकार और लेखक विलियम डेल¨रपल ने एंग्लो सिख वॉर पर अपनी राय कुछ इन्हीं शब्दों में रखी। मंच पर उनके लेखक अमर पाल सिद्धू, डॉक्टर सुखमनी बल रायर और आइआरएस मनदीप राय शामिल हुए।
एकता न होने की वजह से हुआ सिख विरासत का पतन
डेल¨रपल ने कहा कि लड़ाई से पहले ही ब्रिटिश ने बेहतर रूप से भारत में अपने पांव जमा लिए थे। मैंने ईस्ट इंडिया कंपनी पर खोज की तो जाना कि उस वक्त ब्रिटिश हुकुमत किस तरह से आधुनिक हथियारों से लेस थी। ऐसे में दूसरी एंग्लो सिख वॉर के दौरान पंजाब की स्थिती कमजोर रही। साथ ही उस दौरान एकता न होने की वजह से भी सिख विरासत को पतन होने लगा। निहंगों ने भी अंग्रेजी हुकुमत की तरह आधुनिक हथियारों की जगह अपने पारंपरिक हथियारों से लड़ने की ठानी थी। ऐसे में यह एकतरफा युद्ध ज्यादा हो चुका था।
पाकिस्तान का बनना सिख विरासत को नुकसान : सिद्धू
लंदन में भारतीय मूल के लेखक अमर पाल सिद्धू ने कहा कि एंग्लो सिख वॉर के दौरान ब्रिटिश राज पंजाब तक पहुंचा और यहीं से भारत पूरी तरह गुलाम हुआ। इसी के साथ दो देशों की बुनियाद भी जाते जाते ब्रिटिश हुकुमत रख गए। अब दुर्भाग्य यह है कि सिख विरासत भी दो देशों में बंट गई। पाकिस्तान का बनना यकीनन सिख विरासत के लिए नुकसानदायक रहा है।