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क्रिटिकल इलनेस कवर कितना जरूरी, जानिए कैसे करें इसका चुनाव

November 30, 2017 11:28 AM

नई दिल्ली ,29 नवंबर ( न्यूज़ अपडेट इंडिया ) । महंगाई और चिकित्सा सुविधाओं में तेजी से सुधार सीधे तौर पर गंभीर बीमारियों के इलाज के खर्चें को प्रभावित करता है। साथ ही इसके कुछ गंभीर बीमारियां पॉलिसीधारक के मौजदा स्वास्थ्य बीमा पर भी असर डाल सकती हैं। कैंसर, हृदय, किडनी, लंग्स ट्रांसप्लांट संबंधित बीमारियों का इलाज खर्च 30 लाख या उससे अधिक का पड़ जाता है। ऐसे में 5 लाख, 10 लाख या 20 लाख की हेल्थ पॉलिसी अपर्याप्त मानी जाती है।

इस स्थिति में आपकी मदद क्रिटिकल इलनेस इंश्योरेंस कर सकता है। यह महंगे इलाज के मामले में बेहतर कवर देता है। इसलिए क्रिटिकल इलनेस पॉलिसी खरीदने से पहले कुछ जरूरी बातों का जरूर ध्यान रखें।

कितनी राशि का कवर खरीदना चाहिए?
निवेश और टैक्स एक्सपर्ट बलवंत जैन का मानना है चूंकि गभीर बीमारी के निदान के पश्चात आपकी आमदनी बंद हो जाती है एवं चिकित्सा एवं उपचार पर व्यय बढ़ जाता है, इसलिए आपको आपकी सालाना आय का कम से कम 10 से 12 गुना क्रिटिकल इलनेस कवर खरीदना चाहिए।

ध्यान से पढ़ें कि पॉलिसी में क्या कुछ शामिल है-
हर कंपनी की क्रिटिकल इलनेस पॉलिसी में शामिल होने वाली बीमारियां अलग अलग होती हैं। कुछ कंपनियों की पॉलिसी में 10 बीमारियां शामिल होती हैं, वहीं कुछ के में 20 या उससे अधिक बीमारियां हो सकती है। आमतौर पर क्रिटिकल इलनेस पॉलिसी में कैंसर, स्ट्रोक, किडनी संबंधित बीमारियां आदि शामिल होती हैं। अपनी हेल्थ प्रोफाइल में परिवार में पहले से चली आ रही बीमारियों (जैनेटिक बीमारी) के बारे में भी पता कर लें। जिस पॉलिसी में ज्यादा से ज्यादा बीमारियां कवर होती है उसी चयन करें। लेकिन इसमें प्रीमियम राशि बढ़ सकती है।

क्रिटिकल इलनेस कवर की क्या है जरूरत-
क्रिटिकल इलनेस कवर में वे खर्चें शामिल होते हैं जो सामान्य तौर पर हेल्थ इंश्योरेंस प्लान में शामिल नहीं होती हैं। कई बार किसी गंभीर बीमारी के चलते पॉलिसीधारक को अपनी नौकरी तक छोड़नी पड़ जाती है। ऐसी स्थिति में क्रिटिकल इलनेस कवर बीमारी और रोजमर्रा के खर्चों दोनों का ध्यान रखता है।

पर्याप्त राशि का क्रिटिकल इलनेस कवर लें-
आप जिस भी बीमारी के लिए क्रिटिकल इलनेस इंश्योरेंस खरीद रहे हैं सुनिश्चित करें कि उसका पर्याप्त कवर साइज है। उदाहरण के तौर पर अगर पॉलिसीधारक को हृदय रोग है तो भविष्य में इसके इलाज में तकरीबन 15 लाख रुपये तक का खर्च आ सकता है। ऐसे में इस तरह की पॉलिसी का चयन करें जो कम से कम इसकी पूरी राशि को सम्मिलित करें।
 

पॉलिसी खरीदते समय ग्राहक के सामने दो विकल्प होते हैं। पहला या तो क्रिटिकल इलनेस पॉलिसी को अलग से खरीद लें या फिर इंश्योरेंस कंपनी से बात करके हेल्थ पॉलिसी के साथ राइडर के रूप में खरीद लें। अगर आप क्रिटिकल इलनेस को राइडर के रूप में लेते हैं तो पॉलिसी पीरियड के दौरान प्रीमियम की राशि एक समान रहती है। लेकिन सामान्य बीमा कंपनी से अगर आप इसे अलग से खरीदते हैं तो पॉलिसी का मूल्य उम्र के आधार पर संशोधित हो जाता है।

निवेश और टैक्स एक्सपर्ट बलवंत जैन का मानना है कि क्रिटिकल इलनेस के जोखिम को कवर करने के लिए जीवन बीमा एवं स्वास्थ्य बीमा के साथ में मिलने वाले राइडर की राशि पर्याप्त नहीं होती है। इसके अंतर्गत जो भी बीमारियां (रोग) शामिल होती हैं उससे जुड़े नियम हर एक कंपनी में अलग अलग होते हैं। यह भी जरूरी नहीं है कि जो जीवन बीमा या स्वास्थ्य बीमा आप खरीद रहे हैं उसके साथ मिलने वाले राइडर में वो सब गंभीर बीमारियां कवर हों जो आप चाहते हैं।

राइडर के रूप में कुछ हिस्सा ही क्रिटिकल इलनेस कवर के रूप में होगा, यदि आप क्रिटिकल इलनेस कवर पर्याप्त राशि में नहीं खरीदते तो जरूरत के समय यह कम पड़ सकता है। वहीं अगर आप इसे अलग से खरीदते हैं तो आप अपनी जरूरतों के हिसाब से पॉलिसी खरीद सकते हैं। साथ ही अलग से पॉलिसी खरीदने में इस कवर में ज्यादा स्वतंत्रता मिलती है।

क्रिटिकल इलनेस कवर खरीदते समय इसका राइडर और पॉलिसी दोनों की तलुना कर लें। इनसे जुड़ें नियम व शर्तों को भी ठीक प्रकार से पढ़ें।

क्रिटिकल इलनेस में कौन बीमारियां नहीं होती शामिल-
क्रिटिकल इलनेस पॉलिसी खरीदने के 60 दिनों तक (कुछ मामलों में 30 दिन) कोई कवरेज नहीं मिलती। इसमें कोई भी पहले चली आ रही बीमारी और विदेश में हुआ ट्रीटमेंट शामिल नहीं होता है। इस कवरेज के दायरे से दांतों से जुड़े इलाज, बर्थ कंट्रोल, लिंग परिवर्तन, कैटरैक्ट आदि बीमारियां बाहर होती हैं।

 
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